हर शाख़ पे गुन्चा-ओ-गुल ऐसे जड़े हैं

हर शाख़ पे गुन्चा-ओ-गुल ऐसे जड़े हैं जैसे कि सुहागिन की कलाई में कड़े हैं ये ख़ाम-ख़याली हमें बहला नहीं सकती अब और, कि हम अपनी ही धरती पे खड़े हैं सच बात तो ये है कि वो बौनों के हैं वंशज जो लोग समझते हैं कि वो बहुत बड़े हैं चाहा तो बहुत फिर … Continue reading हर शाख़ पे गुन्चा-ओ-गुल ऐसे जड़े हैं